गीत – खिलते हैं गुल यहाँ, खिल के बिखरने को
मिलते हैं दिल यहाँ, मिल के बिछड़ने को
फ़िल्म – शर्मीली (1971)
संगीतकार – सचिनदेव बर्मन
गीतकार – नीरज
गायक – किशोर कुमार/लता मंगेशकर (टैण्डम सांग)

गुलशन नन्दा एक नाम थे जो सामान्य पाठकों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय थे, जिनके उपन्यास आम आदमी बड़ी रुचि से पढ़ा करते थे लेकिन साहित्य जगत में जिन्हें अछूत समझा जाता था। हिन्दी साहित्य में उनके उपन्यासों को ‘पल्प लिटरेचर’ या ‘पल्प फ़िक्शन’ कह कर हिक़ारत की नज़रों से देखा जाता था। उनके उपन्यास जो साधारणतः हिन्द या अन्य पाॅकेट बुक्स में छपते थे अपनी बिक्री से तथाकथित साहित्यकारों को अँगूठा दिखा जाते थे। ‘कटी पतंग’ तथा ‘झील के उस पार’ उनके ऐसे उपन्यास थे जिन्होंने बिक्री के नये कीर्तिमान स्थापित किये थे। उनके उपन्यास सीधी सरल भाषा में, शेरो शायरी से भरपूर, रोमांटिक और पाठकों को लुभाने वाले होते थे। उनके पाठकों में महिलाओं की संख्या अधिक होती थी। मोटे तौर पर उनकी लोकप्रियता की तुलना आज के समय के सास बहू और नागिन वाले टीवी सीरियल्स की लोकप्रियता से समझी जा सकती है। उनके कुछ प्रसिद्ध उपन्यास थे – काँच की चूड़ियाँ, घाट का पत्थर, जलती चट्टान, एक नदी दो पाट, कलंकिनी, सूखे पेड़ सब्ज़ पत्ते, गुनाह के फूल इत्यादि।
उनके उपन्यासों की लोकप्रियता से कई हिन्दी फ़िल्म निर्माता भी उनकी ओर आकर्षित हुये। सबसे पहले उनके उपन्यास ‘अंधेरे चिराग़’ पर ‘फूलों की सेज‘ (1964, मनोज कुमार, वैजयंतीमाला) फ़िल्म बनी। इसके संगीतकार दक्षिण के जानेमाने आदि नारायण राव थे, जिन्होंने अपनी पिछली फ़िल्म ‘सुवर्ण सुन्दरी‘ में ‘ कुहू कुहू बोले कोयलिया ‘ जैसे मधुर शास्त्रीय धुनों पर आधारित गीत दिये थे।

उसके बाद गुलशन नन्दा की पुस्तकों पर आधारित फ़िल्मों की बाढ़ सी आ गई – ‘काजल‘ (उपन्यास – माधवी – राजकुमार, मीना कुमारी, धर्मेन्द्र, पद्मिनी), ‘खिलौना‘ ( उपन्यास – पत्थर के होंठ – संजीव कुमार, मुमताज़),’महबूबा‘ (उपन्यास – सिसकते साज़ – राजेश खन्ना, हेमा मालिनी), ‘दाग़‘ (उपन्यास – मैली चाँदनी – राजेश खन्ना, शर्मीला टैगोर, राखी ) , ‘नील कमल‘ (राजकुमार, वहीदा रहमान, मनोज कुमार), ‘कटी पतंग‘ (राजेश खन्ना, आशा पारेख), ‘झील के उस पार‘ (धर्मेन्द्र, मुमताज़, योगिता बाली) आदि आदि।

इसके अलावा उनकी लिखी कहानियों पर अनेक हिट फ़िल्में बनीं – नया ज़माना, सावन की घटा, पत्थर के सनम, जुगनू, जोशीला, अजनबी, भँवर, आज़ाद वग़ैरह। साहित्य जगत से उपेक्षित गुलशन नन्दा ने फ़िल्म जगत से ख़ूब नाम और दाम कमाया। निर्माता सुबोध मुखर्जी की फ़िल्म ‘शर्मीली’ ( 1971 ) जिसमें शशि कपूर के साथ डबल रोल में राखी थीं अपने समय की सफल फ़िल्मों में गिनी जाती है। यह फ़िल्म गुलशन नन्दा की कहानी पर आधारित थी लेकिन प्रसिद्ध लेखिका शिवानी ने गुलशन नन्दा पर उनके उपन्यास ‘विषकन्या’ की कथावस्तु चुराने का आरोप लगाया था। ‘विषकन्या’ उपन्यास साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास जुड़वा बहनों की कहानी थी जिसमें एक बहन सीधीसादी, नेक तथा दूसरी तेज़ तर्रार, स्वार्थी थी। लगभग यही कथामूल फ़िल्म ‘शर्मीली’ का भी था। ‘शर्मीली’ के लोकप्रिय गीत संगीत का श्रेय नीरज व सचिनदेव बर्मन को जाता है।

साभार:- श्री रवींद्रनाथ श्रीवास्तव जी।

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